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फ़ुरसत_Part7

1. तूने तो कब का, रिहा कर दिया अपने तसव्वुर से,, ये तो मैं हूँ, जो अब तक तेरे अक्स को ओढ़े हुए हूँ।। 2. कैसे कहूँ, शिकायत कितनी थी  बातें जो दरमियाँ थी, उनकी नज़ाकत कितनी थी।  बहुत कुछ सुना, और  सहा हमने  कैसे कहूँ, छटपटाहट कितनी थी।। 3. उम्मीदों का खेल, आखिर बंद हो गया वो ग़मज़दा माहौल कम हो गया न आश रही की अब कुछ हासिल हो जाए, वो वादों का खेल, आखिर बंद हो गया।।  ......आलोक

Sleepless_nights

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 ख़ामोश रातों में ,  वो अजीब सी धुन होती मेरे भाव चिल्लाते , और कायनात सुन्न होती।  पहर दर पहर यूँ ही फिसल जाते  जब द्वंद की आगोश में, मन और ये आँखें होती । दोनों का लड़ना जैसे जरूरी सा होता, एक को सोने की चाह, तो दूजे को बस घूमना होता बाद बन एक दूसरे के साथी, मीलों नापना होता। मन की गाड़ी में आँखों की सवारी होती दूरियों और कल्पनाओं से परे , उनकी जोड़ीदारी होती । बस इसी जुगलबंदी कि, सारी ये कहानी होती  घूमकर, थककर सोने में  रात से कब ,, सुबह होती  रात से कब ,, सुबह होती ।। .....आलोक 

Maturity

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भागती ज़िंदगी में कुछ पल,, ठहराव ज़रूर आता है  जब दो पंक्तियों के बीच में भी पढ़ सके, उम्र के रस्ते एक पड़ाव ज़रुर आता है ।।  ....आलोक 

फ़ुरसत_Part6

1. कोई मजबूरी का फायदा उठाता,  कोई बनता है, इस संसार मे बेबसी  का कारोबार,  ऐसे ही चलता है । 2. काश ये सफर थोड़ा और लम्बा होता निगाहों का ये खेल थोड़ा और चलता  पर अफसोस मंजिल मेरी पहले थी वरना उस दीदार ए रौब का,,,  सिलसिला थोड़ा और चलता । 3. एक दौर तलक मैं सुनता रहा, एक दौर तलक बस सोचता रहा,  यूँ इतने दौर कब गुज़र गए, बस,,,,  वही गुज़रे दौर एक एक कर लिखता रहा । ....आलोक 

तारीख़

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जीता जागता एक दिन फ़नाह हो जाता है , सब मोह छोड़ सुपुर्द -ए -ख़ाक हो जाता है  और फिर रह जाती है तो,,,,  बस याद , तारीख़........ आलोक....

चाह

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जीवन चाहे हो सूरजमुखी जैसा, या हो रातरानी समान , दोनों  में अपने लम्हे जीने  का है , गुण अपार है संज्ञान उन्हें बखूबी ,  वो लम्हा बस एक पहर समान अगले पल होगा संकट महान , जब न होगी लालिमा, न पहर रजनी समान  जीते हैं, इंतज़ार करते हैं, शिद्द्त से  चाहे हो वो लालिमा,  या पहर रजनी समान । चाह  आलोक...  

फ़ुरसत_Part5

1. उड़ जाऊँ इस तरह कि गुलाल हो जाऊँ बुझे बुझे चेहरों की  लालिमा हो जाऊँ कुछ न दिखे बस गुलाल ही गुलाल हो खुशियों की आड़ में छिपता मलाल हो भरूँ हाथों में और बरस जाऊँ उड़ जाऊँ इस तरह कि गुलाल हो जाऊँ । 2. पतझड़ आयी पत्तों ने अलविदा कहा जीवित रहने इस विषम घड़ी में  नए मौसम में फिर एक होंगे  सुंदरता ,जीवन और उल्लास लिए। 3. ज़ुस्तज़ू हो थोड़ी ही सही गुफ़्तगू हो थोड़ी ही सही रजा नहीं है ताउम्र की जैसे प्यासी धरती पर  बरसात हो,,, थोड़ी ही सही ।  .... आलोक