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Showing posts from December, 2018

उतरन,,

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अधूरी इच्छाओं को पूरा करने का सबब है,उतरन रोते हुए को सहसा हँसा देना है,उतरन जिस किसी चीज को पा  नहीं सकते ,  उस के पास होने का एहसास है,उतरन ।  मज़बूरी और अल्पताओं का नाम है,उतरन किसी से विशेष लगाव का सार  है,उतरन हर अनुकूल परिस्थितियाँ होते हुए भी ,वही चाहिए ऐसे आकर्षण का साक्ष्य है,उतरन । किसी गरीब का तीर्थ है,उतरन किसी स्वाभिमानी का सब्र है,उतरन जिसकी आँखों में अपनों के लिए विश्वास हो,   उस के लिए लक्ष्य सोपान है,उतरन । किसी चेहरे की हँसी  की वजह है,उतरन किसी के लिए निभाई जिम्मेदारी है,उतरन कोई भी इन्सान पूर्णता राजा नहीं होता ,    उसके इस दर्द का मरहम है,उतरन । हमारे वजूद का द्योतक है,उतरन  कुछ कर गुजरने की प्रेरणा का स्रोत है,उतरन आज हम भी बड़े बने किसी की उतरन से, कल हम से जुड़कर कोई बने, इसी कड़ी का नाम है,उतरन ।।                                                   ...

अनजान_परिंदा ,,

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I wrote these lines on Christmas Eve 2018. Well this was a random thought.I had only staring two lines at beginning but later on  I used my imagination to create whole poem called "Anjaan_parinda".  So read it,share it  and  I'm pretty much sure that you gonna love it. बेड़ियों का भार , परिंदे की उड़ान भार जितना ज्यादा , उतनी ऊँची उड़ान रिहा होकर परिंदा  कुछ यूँ उड़ा न मुड़कर देखा किला ,न ही वो बेदर्द जहाँ । खाली देख पिंजड़ा, सहमा वो हमदर्द अनजान खौफ था ज़ालिम का , पर एक सहमी सी मुस्कान क्या देगा ज़वाब? जब पूछेगा ज़ालिम महान इतने दिन उस परिंदे से अनकही गुफ़्तगू , हर दिन रिहाई की उसकी वो दुआ, और उस दिन की ज़ुस्तज़ू , जब पूरी हो उड़ान | कैसे कहे कि कल रात उसने , अपनी ज़िंदगी से बेवफाई की उस बेज़ुबान को आज़ाद करने के लिए, खुद उस ज़ालिम से गद्दारी की इल्म था उसे बख़ूबी, होने का अपने फ़नाह पर "दो जाने" रिहा करने को , उसका दिल दे चुका था फरमान । अगली सुबह खाली पिंजड़ा देखा  , उसने तलब किया 'अनजान' उसकी इस गुस्ताख़ हिमाक़त पर ज़ालिम ने दिया मौत का फ़रमान , ए...

कोई अपना,,

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 ऐ माँ तेरा साथ कितना प्यारा है,  ऐ माँ तेरा स्पर्श कितना  न्यारा है, शुक्रगुजार हूँ  उस बनाने वाले का,  कि मेरे पास तू और तेरा प्यार ढ़ेर सारा है,  तेरे प्यार ने मुझे हँसाना सिखाया ,  तेरी डांट  ने मुझे मनाना सिखाया , और कभी रूठ गयी अगर तू मुझसे , तो माथे को चूम कर हक माँगना  सिखाया ।  क्या तेरे साथ के बिना कोई अपना  नहीं होता ,  तेरे दिखाए सपनों के अलावा  कोई सपना नहीं होता , क्योंकि देखा है मैंने छोटे छोटे बच्चों को करतब दिखाते हुए ,  क्या उनको खिलाने  वाला कोई अपना नहीं होता । उनके चेहरे की मासूमियत,  जिम्मेदारी में कहीं खोती सी दिखती है, केवल दो निवाले के लिए उनकी आस, हर आते -जाते चेहरे पर रहती है। मन दुखी भी होता है ,और क्रोधित भी , क्योंकि असमर्थ है हाथ बढ़ाने  को अधिकांशता सभी  रोक देती है कदम बढ़ते हुए उनके  कुछ रूढ़ियाँ , कुछ भी हो सकता है , वो धन,ओहदा या फिर समाज की बेड़ियाँ  । हर कविता या कहानी की पराकाष्...

मैं राही तम के बाट का_ the explorer

मैं राही  तम के बाट का ,    नित्य निरंतर चलना ही कर्तव्य मेरा, लिए एक दिशा दर्शक मशाल,  मंजिल तक पहुँचना ही ध्येय  मेरा,     देख अथाह अँधेरा मन कभी व्याकुल हुआ, पर जिजीविषा है उस पर के जीवन की ,   मैं  राही तम के बाट का |   कितनी रुकावटें आयी, कई सैलाब भी आये , पर तम की समता सब ले गयी,    देख मशाल की लौ कला ,  कभी मन डोला कभी संभला , मीलों चला ,कोसो चला ,    पर न कोई अपना दिखा न पराया ,     मैं राही तम के बाट का |   बाट जोहना ही बस साध्य मेरा , तम ही दर्द और मरहम मेरा ,      किसने दिया साथ और किसने ठगा , तम ने छीना ये आभास मेरा ,  कौन मिलेगा उस पार, रक्षक या भक्षक ?   जाऊंगा किसी नए युग में,          अथवा समाऊंगा मृत्यु के जाल  में, बस यही द्विविधा मेरे जहन  में ,   मैं राही तम के बाट का | मेरा आदि है कहाँ और अंत कहाँ ,    मंजिल का मुझे संज्ञान नहीं, बस च...

Akshardham-2012

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I had visited Akshardham Temple at very first time with my friends in 2012. And we hadn't any idea that camera was on the list of  the prohibited items inside the temple premises. And we all were so excited that none of us checked  the security guidelines on the internet. So after returning to the hostel I got the idea to write something on this whole amazing incident. So here it is..... मैं गया था देखने  भव्यता अक्षर-धाम की , थे साथ  मेरे मित्र-गण  और उत्सुकता  अपार थी| एक  नहीं ,दो नहीं  मित्रों का पूरा मेला था,  जल्दी चलो,जल्दी चलो  प्रश्न यह अकेला था| Akshardham-2012                                       Akshardham-2012 ले चले सब साथ अपने छायांकन उपकरण ,  ये सोंच ,,, क़ि करेंगे छायांकन उस धाम का ,  पर सफलता  न मिली हमें इस प्रयास में , था वर्जित ले जाना उपकरण  सुरक्षा ...

हम युवा हैं,

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हम युवा हैं, संघर्षशील, ऊर्जावान और बुद्धिमान भारत देश का उपनाम पल पल जीता, क्षण क्षण मरता अस्त्तित्व की खोज में न जाने क्या क्या करता हम युवा हैं, पढ़ता फिर  कढ़ता  और पढ़ता फिर भी लक्ष्य के सोपान न चढ़ता लड़ता, भिड़ता फिर आंदोलन करता किल्लत ,जिल्लत और अंततः लाठियाँ फिर भी महकमे को ज़रा फर्क न पड़ता हम युवा हैं, ssc-scam-protest https://gulaabrani.com/2018/12/Uttaran-happiness.html वक़्त , कीमत , रिश्ते सब ताक पर जिम्मेदारी उनकी जेब में और रोष हमारा नाक पर वो खुलेआम वादे करे और आशाएँ सारी राख पर हम युवा हैं, चुनाव की नदी में हम नाव हैं पार लगा दे सबकी नइया ऐसी पतवार हैं मंजिल पर जैसे ही पहुँच गया वो फिर तो बस हम हिचकोले खाती आश हैं हम युवा हैं।।                           ......... आलोक  ssc-scam-protest

उड़ान ...

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अभी अभी दुनिया में आया हूँ, मैं आँखें नहीं  खुली  पर , लगता है दुनिया  देख आया हूँ, मैं  घर क्या होता है ,मुझे पता नहीं  शायद जिस नीड़(घोंसला ) में पड़ा हूँ,  उसी को अपना घर समझने लगा हूँ, मैं ।  धरातल से किस ऊंचाई पर हूँ        पर्वतों से कितनी गहराई  पर हूँ, इस सबसे अभी अनजान हूँ, मैं  अभी तो बस किसी अपने के आश्रय में    ऊपर उड़ने की कौतुकता या ,   नीचे गिरने की घबराहट को महसूस कर रहा हूँ ।  बिना आँख खोले बस नीड़ से ,  आने और जाने वाली हवाओं की संगती को पहचान रहा हूँ, इंतजार है बस , की कब आँखें खुले , और अपने अनुभव की परीक्षा लूँ , मैं  इस दुनिया  को खुद के नजरिये से,      देखूँ  और जिउं , मैं ।   अथाह है, अपार है  बड़ी विस्तृत है ये दुनिया  जिधर देखता हूँ , खुला अम्बर ही उधर है, जिधर मुड़ता हूँ , एक नया रास्ता ही उधर है  उड़े ही  जा रहा  हूँ बस,,क्यों ???? क्योकि ,, ...

यूँ ही रास्ते साथी हो जाते हैं,

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यूँ ही रास्ते साथी हो जाते हैं, आपके खुद की कहानी हो जाते है, जब दूर तलक बस पसरा सन्नाटा हो,  आस पास सब बिखरा पड़ा हो, क्यों क्या और कैसे समझ से परे हो, तब यूँ ही रास्ते साथी हो जाते हैं ।  जब निकट तुम्हारे सिर्फ तुम हो, माहौल की बदलियां धुंध हो, पैरों में ज़रा थकान सी हो, पर  मीलों अभी चलना हो, तब यूँ ही रास्ते साथी हो जाते हैं । जब तुम कभी निराश हो, मन जरा उदास हो, चलते रहने की चाह में हृदय में भरा विश्वास हो तब यूँ रास्ते साथी हो जाते हैं। तब यूँ रास्ते साथी हो जाते हैं ।।                                ----आलोक रास्ते -साथी- हो -जाते- हैं 

वो चार ईटें,,

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 वो चार ईटें,,, माथे पर  पसीना ,   चेहरे  पर सिकन सी थी, मैंने उसे तब  देखा , जब  वो सिर  पर चार ईटें लिए हुई थी।   मैंने उसे ठहर कर नहीं देखा , मैंने उसे रूककर नहीं समझा , एक लम्हा मिला तो देखा , वो सिर पर चार ईटें लिए हुई थी।   रही होगी कुछ  मेरी ही उम्र की , इच्छाएँ  भी होंगी  कुछ मेरी ही तरह की , उसकी अनकही  इच्छाएँ  मुझे भाव दे गयीं , तभी तो लिख रहा हु उस पर , जो सिर  पर चार ईटें लिए हुई थी।   हसरतें पूरी करने कि जगह ,  वो काम  कर रही थी ,  दो वक़्त सुकून से गुजरे , इसीलिये काम कर रही थी , ज़िल्लत कि रोजी से ,  मेहनत  ही अच्छी , शायद तभी  , वो  सिर  पर चार ईटें लिए हुई थी।                ..... आलोक वो -चार- ईटें