अनजान_परिंदा ,,

I wrote these lines on Christmas Eve 2018. Well this was a random thought.I had only staring two lines at beginning but later on  I used my imagination to create whole poem called "Anjaan_parinda".  So read it,share it  and  I'm pretty much sure that you gonna love it.

बेड़ियों का भार , परिंदे की उड़ान
भार जितना ज्यादा , उतनी ऊँची उड़ान
रिहा होकर परिंदा  कुछ यूँ उड़ा
न मुड़कर देखा किला ,न ही वो बेदर्द जहाँ ।

खाली देख पिंजड़ा, सहमा वो हमदर्द अनजान
खौफ था ज़ालिम का , पर एक सहमी सी मुस्कान
क्या देगा ज़वाब? जब पूछेगा ज़ालिम महान
इतने दिन उस परिंदे से अनकही गुफ़्तगू ,
हर दिन रिहाई की उसकी वो दुआ,
और उस दिन की ज़ुस्तज़ू , जब पूरी हो उड़ान |

कैसे कहे कि कल रात उसने ,
अपनी ज़िंदगी से बेवफाई की
उस बेज़ुबान को आज़ाद करने के लिए,
खुद उस ज़ालिम से गद्दारी की
इल्म था उसे बख़ूबी, होने का अपने फ़नाह
पर "दो जाने" रिहा करने को ,
उसका दिल दे चुका था फरमान ।

अगली सुबह खाली पिंजड़ा देखा  ,
उसने तलब किया 'अनजान'
उसकी इस गुस्ताख़ हिमाक़त पर
ज़ालिम ने दिया मौत का फ़रमान ,
एक बेड़ियाँ खोल उड़ा ऊँचे आसमान
और दूजे पर बेड़ियाँ डाल ,
फेंका  गहरे समुन्दर में 'अनजान' ।

सहमे परिंदे ने एक बार भी मुड़कर न देखा
गहरे गर्त में गया 'अनजान',
और उस परिंदे की ऊँची उड़ान
बेड़ियों का भार , गर्त में 'अनजान'
बेड़ियों का भार , परिंदे की उड़ान
भार जितना ज्यादा, उतना गहरा 'अनजान'
भार जितना ज्यादा , उतनी ऊँची उड़ान ।।

                                            .......आलोक 

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PARINDA 


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