मैं राही तम के बाट का_ the explorer

मैं राही  तम के बाट का ,
   नित्य निरंतर चलना ही कर्तव्य मेरा,
लिए एक दिशा दर्शक मशाल,
 मंजिल तक पहुँचना ही ध्येय  मेरा,
    देख अथाह अँधेरा मन कभी व्याकुल हुआ,
पर जिजीविषा है उस पर के जीवन की ,
  मैं  राही तम के बाट का |

  कितनी रुकावटें आयी,
कई सैलाब भी आये ,
पर तम की समता सब ले गयी,
   देख मशाल की लौ कला ,
 कभी मन डोला कभी संभला ,
मीलों चला ,कोसो चला ,
   पर न कोई अपना दिखा न पराया ,
    मैं राही तम के बाट का |

  बाट जोहना ही बस साध्य मेरा ,
तम ही दर्द और मरहम मेरा ,
     किसने दिया साथ और किसने ठगा ,
तम ने छीना ये आभास मेरा ,
 कौन मिलेगा उस पार, रक्षक या भक्षक ?
  जाऊंगा किसी नए युग में,
         अथवा समाऊंगा मृत्यु के जाल  में,
बस यही द्विविधा मेरे जहन  में ,
  मैं राही तम के बाट का |

मेरा आदि है कहाँ और अंत कहाँ ,
   मंजिल का मुझे संज्ञान नहीं,
बस चले जा रहा हूँ, चले जा रहा हूँ,
 न कोई तृष्णा न चाह मेरी ,
 चला भी गिरा भी ,फिर उठकर  चला मैं,
  किया काँटों  ने आलिंगन,
    या फूलों  ने तिरस्कार ,
मिला सोने का आश्रय ,
    या निद्रा अपार ,
 बस चला जा रहा मैं समय रथ पर  सवार,
        मैं राही तम के बाट का ||

                                             
                                           ......आलोक 
                                             
   

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