वो चार ईटें,,

 वो चार ईटें,,,

माथे पर  पसीना ,
  चेहरे  पर सिकन सी थी,
मैंने उसे तब  देखा , जब 
वो सिर  पर चार ईटें लिए हुई थी। 

 मैंने उसे ठहर कर नहीं देखा ,
मैंने उसे रूककर नहीं समझा ,
एक लम्हा मिला तो देखा ,
वो सिर पर चार ईटें लिए हुई थी। 

 रही होगी कुछ  मेरी ही उम्र की ,
इच्छाएँ  भी होंगी  कुछ मेरी ही तरह की ,
उसकी अनकही  इच्छाएँ  मुझे भाव दे गयीं ,
तभी तो लिख रहा हु उस पर ,
जो सिर  पर चार ईटें लिए हुई थी। 

 हसरतें पूरी करने कि जगह ,
 वो काम  कर रही थी ,
 दो वक़्त सुकून से गुजरे , इसीलिये काम कर रही थी ,
ज़िल्लत कि रोजी से , 
मेहनत  ही अच्छी ,
शायद तभी  , वो
 सिर  पर चार ईटें लिए हुई थी। 

              ..... आलोक
कविता ,वो -चार- ईटें , mercy , child-labour
वो -चार- ईटें 

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