कोई अपना,,
ऐ माँ तेरा साथ कितना प्यारा है,
ऐ माँ तेरा स्पर्श कितना न्यारा है,
शुक्रगुजार हूँ उस बनाने वाले का,
कि मेरे पास तू और तेरा प्यार ढ़ेर सारा है,
तेरे प्यार ने मुझे हँसाना सिखाया ,
तेरी डांट ने मुझे मनाना सिखाया ,
और कभी रूठ गयी अगर तू मुझसे ,
तो माथे को चूम कर हक माँगना सिखाया ।
क्या तेरे साथ के बिना कोई अपना नहीं होता ,
तेरे दिखाए सपनों के अलावा कोई सपना नहीं होता ,
क्योंकि देखा है मैंने छोटे छोटे बच्चों को करतब दिखाते हुए ,
क्या उनको खिलाने वाला कोई अपना नहीं होता ।
उनके चेहरे की मासूमियत,
जिम्मेदारी में कहीं खोती सी दिखती है,
केवल दो निवाले के लिए उनकी आस,
हर आते -जाते चेहरे पर रहती है।
मन दुखी भी होता है ,और क्रोधित भी ,
क्योंकि असमर्थ है हाथ बढ़ाने को अधिकांशता सभी
रोक देती है कदम बढ़ते हुए उनके कुछ रूढ़ियाँ ,
कुछ भी हो सकता है ,
वो धन,ओहदा या फिर समाज की बेड़ियाँ ।
हर कविता या कहानी की पराकाष्ठा होती है,
परन्तु मेरी इस कृति की कोई पराकाष्ठा नहीं है,
अपितु यह एक प्रश्न है, जो सबसे मुखातिब होती है ।।
....आलोक
कोई अपना |
👌👌👌
ReplyDeleteThank you ruchi,🙏
DeleteBahut khoob ♥️
ReplyDeleteThanx bawaa 🙂,, waise sketch 👌👌❤️ hai,,
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