उड़ान ...


अभी अभी दुनिया में आया हूँ, मैं
आँखें नहीं  खुली  पर , लगता है दुनिया  देख आया हूँ, मैं 
घर क्या होता है ,मुझे पता नहीं 
शायद जिस नीड़(घोंसला ) में पड़ा हूँ,
 उसी को अपना घर समझने लगा हूँ, मैं । 

धरातल से किस ऊंचाई पर हूँ 
      पर्वतों से कितनी गहराई  पर हूँ,
इस सबसे अभी अनजान हूँ, मैं 
अभी तो बस किसी अपने के आश्रय में 
  ऊपर उड़ने की कौतुकता या ,
  नीचे गिरने की घबराहट को महसूस कर रहा हूँ । 

बिना आँख खोले बस नीड़ से ,
 आने और जाने वाली हवाओं की संगती को पहचान रहा हूँ,
इंतजार है बस , की कब आँखें खुले ,
और अपने अनुभव की परीक्षा लूँ , मैं 
इस दुनिया  को खुद के नजरिये से,
     देखूँ  और जिउं , मैं । 

 अथाह है, अपार है  बड़ी विस्तृत है ये दुनिया 
जिधर देखता हूँ , खुला अम्बर ही उधर है,
जिधर मुड़ता हूँ , एक नया रास्ता ही उधर है 
उड़े ही  जा रहा  हूँ बस,,क्यों ????
क्योकि ,, 
       अब अपनी  खुली आँखों से दुनिया देख जो  रहा हूँ, मैं ॥ 

                                .... आलोक 
poem-in-hindi-udaan , कविता , उड़ान
उड़ान  
                          


Comments

Popular posts from this blog

Sleepless_nights

फ़ुरसत_Part7

Maturity