बाल-श्रम,,
किसी कुलीन घर में जन्म न लेकर, मैंने कौन सा अपराध किया , ढ़ो रहा हूँ बोझ पशुओं की तरह , क्या मानवता ने हम पर है , उपहास किया । हमारी भी कुछ चाह ,कुछ हसरतें हैं , हमारे भी कुछ सपने ,कुछ अपने हैं, लेकिन उन सपनो को पूरा करने की बस लालसा ही रह गयी , अब तो हमारे हाथों में बस बोझ खींचने की रस्सी ही रह गयी । हमारी चीखें और आह प्रकृति में समा गई , जिसने भी दी गालियाँ ही दी , जो विकृति बन लहलहा गई , किताबों और मित्रों का तो साया ही नसीब न था , बिना खता के ही मलिन हुआ , क्योकि मानवता का ये, उपहार जो मिल गया था । बस इतना कहूँगा, समाज के उन ठेकेदारों से , क्या तुम में इतना ही पौरुष शेष रहा , करवा रहे हो बाल-श्रम इन नौनिहालों से, क्या हड्डियों में बस इतना ही बल शेष रहा ॥ ...आलोक Child-Labour