नींद और मैं ,,


यूँ अक्सर रातों में नींद से बहस होती है 
वो चाहती है हमें सुलाना 
और इन आँखों  में,
 सोने की ज़िद होती है
वो मुझसे पूछती है ,आखिर वजह क्या है ?
इतनी  बेसब्री  से मैं इंतज़ार में हूँ,
 जाने तुम्हारी रजा क्या है 
परेशान है जिसके लिए जहाँ सारा
वो तुम्हारे इंतज़ार में आस लगाये बैठी है |

आखिर क्यूँ  हमसे खफा हो,
हमने ऐसी खता क्या की है?.....
मुझे की मनाने की हद से ,
उसमे नमी सी  गयी 
आवाज में उसकी ,
एक उदासी समा गयी 
इस हसीन रात में यूँ,
नींद का रूठना गवारा  हुआ 
जो आया हो मेरे लिए , 
उसे इस तरह तड़पाना  हुआ | 

आखिर मैंने अपने जज़्बातों को ,
शब्दों का सहारा दिया 
बिठा कर उसको सामने
मन में जो था कहना शुरू किया 
कि  बड़ी बेसब्री से ,
तुम्हारे आने का इंतज़ार करता हूँ 
ताकि सोऊँगा चैन से कुछ पल ,
सब कुछ भुला कर आगोश में तेरी 
पर तुम्हारे आने के बाद का ,
आलम कुछ और ही होता  है 
या कहूँ,,,
तम्हारी पनाह में आकर,
ये आँखें बाग़ी हो जाती हैं | 

तुम में झाँकता हूँ , 
तुम्हे महसूस करता हूँ 
तुम्हारा साथ देर तक मिले इन आँखों को,
इसीलिये तुम्हारा विरोध करता हूँ
और बस तुम्हारा साथ पाने की कोशिश में,
ये बहस करता हूँ ,
चाहते हुए भी तुम्हें तंग करता हूँ 
दिखता नहीं हक़ीक़त में, फिर भी 
तुम्हारे उस गुस्साए चेहरे को महसूस करता हूँ 
पता है तुम चाहती हो सुलाना ,,
लेकिन फिर भी,,,
 मैं  सोने की ज़िद करता  हूँ | 

                                                          ....आलोक  


shimla, poem, midnight, slimber,कविता
Midnight Memories.




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

Sleepless_nights

फ़ुरसत_Part7

Maturity