Posts

Showing posts from March, 2019

Lamhaa

Image
हर लम्हा मुझसे कुछ कहने की आस रखता है, रहूँ भिज्ञ  या अनभिज्ञ  उससे , फिर भी प्रयास  करता  है हो चाहे ऊँचाइयों के अर्श पर, या फिर गहराइयों के फर्श पर बस यही लम्हा ही तो है, जो साथ रहता है | हो जीवन विलासिता का, या हो संघर्ष  गरीबी का एक लम्हा ही है जो ये दीवार बनाता है चाहे तन पर हो मखमल या फटे-चिथड़े लत्ते, ये लम्हा ही हमें मर्म-हीन और बेशर्म बनाता है । बचपन बीते अपनों के साये में, या सड़कों में पड़े मलबे के सराय में ये लम्हा ही है जो हमें ढीठ बनाता है कहीं गुजरती रातें छप्पन-भोग के स्वाद से, तो कहीं भूखे पेट करवटों की आड़ में, ये लम्हा ही है जो सम्पन्नता, और विपन्नता का अधिकार दिलाता है । Lamhaa https://gulaabrani.com/2019/02/tomorrow-impression.html रुक जाते है हम,,, किसी असहाय की मदद करने में कमबख्त ये लम्हा ही हमें सफ़ेद-पोश, और उसे जग की धूल बनाता है ।                                   .....आलोक 

कुछ तो कहानी लिख रहा हूँ मैं _Inside out

Image
कुछ तो कहानी लिख रहा हूँ मैं कुछ सुलझी कुछ उलझी लिख रहा हूँ किसको समझा दूँ ,क्या समझ रहा हूँ क्या कह दूँ, आख़िर कर क्या रहा हूँ बहती हवाओं में स्वतः बह रहा हूँ बार बार  संभलने के बाद भी ढ़ह रहा हूँ आख़िर कुछ तो कहानी लिख रहा हूँ मैं । दो पल ठहर कर सोचा, कहाँ चल रहा हूँ, है कोई नई डगर या फिर वहीं मुड़ रहा हूँ उम्मीदों की हार या हताशाओं का प्यार है वास्तिवकता कुछ या फिर सब आभास यही सवालात कुछ ,खुद से आम कर रहा हूँ आख़िर कुछ तो कहानी लिख रहा हूँ मैं । Inside-out https://gulaabrani.com/2019/02/the-saga-of-sacrifice.html मन की अधीरता को हर दफा चुप कर रहा हूँ अवलोकन खुद के जिन्हें बेसबब कह रहा हूँ दिमाग और मन के दंगल का, रोज मध्यस्थ सा बन रहा हूँ गणनाएँ न जाने कौन कौन सी कर रहा हूँ जवाब हैं बहुतेरे जिनके लिए फिर रहा हूँ ज़रा सी आस में भी पूरा जी रहा हूँ आख़िर कुछ तो कहानी लिख रहा हूँ मैं । रोज खुद में , एक वजूद  खोज रहा हूँ समय को बहुत,,, बहुत तेजी से निकलता देख रहा हूँ खुद से सहसा बस एक ही सवाल उठता है, क्या वाकई कुछ कर रहा हूँ मैं ?? आख़िर कुछ...

वेद_the Conspirator

Image
HAHA,, well the most awaited poem of the century is now exclusively available here😆😆. There was a scenario back in the college related to my friend. He told me a real life incident that was quite messed up. He told me that some one had given him a nickname called the_conspirator .                            That incident was a bit shocking but farcical too for him.Though he had no idea how to react on that remark because he never imagined such thing. Well he told me the story with mixed expressions of surprise and ridicule on his face. As being his friend and writer I created this master piece😉  in 2014 but told him that I would release this poem on some day but not today . And finally today is that great, grand day.  So here is that master piece........ बहती हवाओं  से एक संदेशा आया है, मेरे किये गए कारनामों का लेखा आया  है , न जाने कब मैं , किसके लिए , क्या करता हूँ जो...

दायित्व_Sad Reality

Image
I wrote this poem on march 9th, 2013 . And it is a bit coincidence that after 6 years I am sharing it on my blog on march 10th, 2019 . Yeah, it is not exactly the same date but the closest one. I already posted it on facebook 6 years ago .              My whole creation is based on the sad reality around us. Parents become the most important responsibility at their old age. They went through all trauma, pain and sacrifice for the sake of their children's future .No matters what are the situations, they always ready to do anything for a cute smile on your face.              But what do we do??  just leave them in the lurch . In their dire need, we just manage to involve ourselves in the busiest facade . I think that's why, it is the "Sad Reality". उम्र हो चली  मेरी  बिछड़ने की अपनों से,  साँस चल रही बस मिलने की हसरत में अपनों से, न जाने किस घड़ी उसका पैगाम आ जाये, और तैयारी  ...

हाँ, एक कुआँ हूँ मैं

Image
हाँ, एक कुआँ हूँ मैं भावनाओं के नीर से लबालब मर्म की मिट्टी से निर्मित सहजता की जगत लिए सींचने में तत्पर, एक कुआँ हूँ मैं । मैं भरता रहा, निकलता रहा रही जिसकी जरूरत जैसे, वैसे ही मेरा नीर बहता रहा समय दर समय गुजरता रहा मेरी उपयोगिताओं का सफर बढ़ता ही गया। Well of Feelings https://gulaabrani.com/2019/01/care-limit.html सहसा समय बदला प्रकृति ने अपना दाव खेला, मुझमे से बस निकलता रहा मेरा स्तर धीरे धीरे घटता जा रहा है अरसा गुज़र गया इंतज़ार में, न बारिश बची,न झीलें फिर से उफनाने का स्वप्न भी क्षण क्षण मरता रहा, हाँ, एक कुआँ हूँ मैं । आश में हूँ शायद बरस जाए मेरे खाली होते अस्तित्व में एक बार फिर बहार आ जाये, ललचायी आँखों से ऊपर देखता हूँ, हाँ, एक कुआँ हूँ मैं ।।                              .....आलोक