रोटी,,

रोटी भी कैसे कैसे  रंग दिखाती है,
कभी नौकर तो कभी मालिक बनाती है
दो वक़्त रोटी के लिए ,
इन्सान क्या नहीं करता ,
कभी तोड़ता कमर मजूरी में,
कभी फोड़ता सिर मज़बूरी में |

कभी ठेला लगा कर, गली-गली चिल्लाता
तो कभी मौत का खेल,दिखा कर रोजी कमाता
कभी बनकर फेरी वाला,तपती धूप में चक्कर लगता
तो कभी बनकर जोकर लोंगो को हंसाता |

shayri-कविता -election-employment
रोटी 
कभी बर्फ का गोला बनाकर ,बच्चों को हर्षाता
तो कभी भट्ठी के सामने बैठकर, हथौड़ा चलता
कभी सिर पर बोझा रखे मीलों चलता
तो कभी भाड़ में चने की तरह भुनता |

रोता है देख हालत अपने कुनबे की,
रोटी के लिए,,,
इसीलिये करता है ऐसे कम,
जो निंदनीय है हम आप के लिए |

किसी इन्सान की तकदीर मजदूरी नहीं होती
ये तो दर्द है रोटी का जो बनावटी नहीं होती
पता नहीं क्यों दर्द सा होता है इनको देख कर
शायद,,,
रहा हो वास्ता मेरा इनसे ,मेरे किसी जन्म पर |

                                         .....आलोक 
                                                                

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