तन्हाई भी कुछ कहती है,,

सुनो,तन्हाई भी कुछ कहती है,
जो, लोग नहीं कहते वो सब कहती है,
सुनाती है सबकुछ जो कहना चाहते हो,
कभी सहारा कविता ,
तो कभी ग़ज़ल कहती है ।

न किसी की तलाश ,
न किसी से आस
बस ख़ामोश होकर,
ये तन्हाई सब कुछ कहती है
न इल्तज़ा, न शिकायत
बस दिल के एहसास,
अपने आप से कहती है,
सुनो, तन्हाई भी बहुत कुछ कहती है ।
https://gulaabrani.com/2019/06/october.html?m=1

चुपचाप कह लेती है,
जी भर के झगड़ लेती है
औऱ हिलाकर तुमको,
कई सवालात करती है
क्या थे, क्या हो गए हो?
खुद के वजूद का भान कराती है
गुहार लगाती है खुद की आज़ादी की
सुनो, तन्हाई एक वक्त के बाद,
खुद की रिहाई चाहती है ।


                                                          .....आलोक 




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