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Showing posts from August, 2019

फ़ुरसत_Part2

1. क्या हुआ सब सोये क्यों है अपने ख़यालों में खोए क्यों हैं ज़िन्दगी की खींचातानी में,  शायद सब फसें हैं  मुनासिब है,,, पर फिर भी,  क्या हुआ सब सोये क्यों हैं । 2. अच्छाइयाँ ,कुछ अच्छाइयों की कब्र में दफन हो गईं ख़ामोशियाँ, कुछ खामोशियों की रेत में फिसल गईं साल दर साल लम्हात निकलते रहे, और परछाइयाँ, कुछ परछाइयों में जब्त हो गईं। 3. कि उन वीरान गलियों में, अब कोई रुख़ नहीं करता कहते हैं,, पहले मोहब्बत बसती थी यहाँ,, अब महज मुज़समे ही रह गए । रूह तो कब की जा चुकी  ये खाली खोखले हैं,, बेसबब आवाज़ के और कुछ नहीं करता, कि उन वीरान गलियों में, अब कोई रुख़ नहीं करता ।। आलोक.....

शिकायत

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यूँ माहौल में तब्दीली न होती, यूँ हालातों की कुछ जरूरतें न होती, यूँ मुझे भी थोड़ी मतलबी आदतें होती, तो यूँ खुद से इतनी शिकायत न होती । यूँ मुझ से इतनी उम्मीदें न होती, यूँ मेरे ज़हन में ये सब बातें न होती, यूँ मुझमें इतनी समझदारी न होती, तो यूँ खुद से इतनी शिकायत न होती । शिकायत  https://www.gulaabrani.com/2019/08/saavn.html?m=1 यूँ समय की रेत , मुट्ठी से न फिसल रही होती यूँ उन तरसाई आँखों में हरदम आस न होती, यूँ मुझमें भी ये सब देखने की शक्ति न होती, तो यूँ खुद से इतनी शिकायत न होती। यूँ अपने आप में जीने की ज़िद न होती, यूँ थोड़ा सा डरने की आदत न होती, यूँ लापरवाही की थोड़ी शय होती, तो यूँ खुद से इतनी  शिकायत न होती ।।                             आलोक,,,,

फ़ुरसत_Part1

1. कि अब सिर्फ आसमां नहीं दिखता, आखिर और भी छत हैं , जो ऊँची हो गई हैं मेरे मोहल्ले की ।। 2. बहुत से बदलाव देखे है मैंने कुछ ठहराव, पर बहुधा बिखराव ही देखे है मैंने समय ज़ज़्बातों,जरूरतों  को कुछ यूँ तराश देता है कि बरसों खड़ी दीवार में भी अब, ढेरों सुराख देखे है मैंने हाँ, बहुत से बदलवाव देखे है मैंने । 3. इस तरह मेरी बनाई हुई चाय को सिरहाने पर रख कर सो गई, नींद में थी शायद ,, जब फ़रमाइश की उसने ।। 4. कुछ आधे अधूरे सवालात बाकी है बरसो बीती जो मुझ पर,, उसका हिसाब अभी बाकी है आप भी कुछ कम ख़फ़ा, न हुआ करते थे बस मेरे हिस्से की नाराज़गी अभी बाकी है कुछ आधे अधूरे सवालात बाकी है ।। .....आलोक

सावन

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I wrote these lines years ago.Recently, I was going through my poetry collection and found it. And fortunately, it is the holy month of saavn.  So I post it now. Many of you will say, what a timing or what a coincidence and I say yes , it is .. सावन की पहली बारिश में, मैं भीगा , मेरा तन भीगा मेरा मन भीगा , जीवन भीगा । टप टप गिरती बूंदों से, घर गूँजा, आँगन गूँजा मिलकर मधुर ध्वनि से खग की डाली चहकी, कलियाँ चहकी और चहकी बागों की गालियाँ । छल छल बहते वर्षा जल से, पोखर छलके, नदियाँ छलकी छलके सारे ताल-सरोवर । सावन  सावन की पहली बारिश में, यादें भीगी, बातें भीगी मंशा भीगी, तृष्णा भीगी प्यासी सूखी धरती भीगी । नाच रहा मन छप छप करता जैसे नाचे बाग मयूरा बोल रहा मन ची-ची करता जैसे गाये डाल पपीहा । सावन की पहली बारिश में, मैं भीगा , मेरा तन भीगा मेरा मन भीगा , जीवन भीगा ।                                                आलोक ,,...