फ़ुरसत_Part1
1.
कि अब सिर्फ आसमां नहीं दिखता,
आखिर और भी छत हैं ,
जो ऊँची हो गई हैं मेरे मोहल्ले की ।।
2.
बहुत से बदलाव देखे है मैंने
कुछ ठहराव,
पर बहुधा बिखराव ही देखे है मैंने
समय ज़ज़्बातों,जरूरतों को
कुछ यूँ तराश देता है
कि बरसों खड़ी दीवार में भी अब,
ढेरों सुराख देखे है मैंने
हाँ, बहुत से बदलवाव देखे है मैंने ।
3.
इस तरह मेरी बनाई हुई चाय को
सिरहाने पर रख कर सो गई,
नींद में थी शायद ,,
जब फ़रमाइश की उसने ।।
4.
कुछ आधे अधूरे सवालात बाकी है
बरसो बीती जो मुझ पर,,
उसका हिसाब अभी बाकी है
आप भी कुछ कम ख़फ़ा, न हुआ करते थे
बस मेरे हिस्से की नाराज़गी अभी बाकी है
कुछ आधे अधूरे सवालात बाकी है ।।
.....आलोक
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