फ़ुरसत_Part3
1. मेरी ख़ामोशी को न जाने क्या क्या समझा, जिसकी जैसी फ़ितरत उसने वैसा ही समझा। बात चुभे तो संभाल लेता हूँ बातों के खंजर की जगह, कलम निकाल लेता हूँ । 2. मेरी खामोशी की वजह पूछते हैं लोग क्यूँ है ये बेरुख़ी वजा पूछते हैं लोग क्या कहूँ उनसे की अब जवाब नहीं आती यूँ ही हर बार जाने क्या बेवज़ह पूछते हैं लोग। 3. दुनिया को देखने के नज़रिये अलग हैं, ज़िंदगी जीने के ज़रिये अलग हैं, बस ख़्वाब पूरे करने की ज़ुस्तज़ू ही है वरना ख़्वाब सोने से पहले और बाद सब अलग हैं । 4. जब मुनासिब हो , बीते दौर में भी जाना चाहिए कुछ बीती और कुछ बीत रही को, रूबरू होना चाहिए । ....आलोक