गुलाबरानी

उसके आने से पहले ,
सब ख़ाक था
ज़िन्दगी तो चल रही थी,
पर जैसे सब आवाक था।

वो आई उसने सब संभाला,
चूल्हा तो उसे रिश्ते में मिला
पर बाहर का हाल उसने खुद संभाला था
रोटी बनाते बनाते ,उसे घर दिखा
बदहाली दिखी, मजबूरी दिखी
और दिल के किसी कोने में,
उसे खत्म करने की एक अलक दिखी ।

वो डट गयी अपने कामों में
भिड़ गई तमाम जंजालों से
उसे निकलना था अपना घर,
इन अवसादों से
इसीलिए वो जूझी दिन रात हर विषम हालातों से ।

क्या थकावट, क्या ज्वर पीड़ा
चली वो मीलों लिए धुन का कीड़ा
न समय का बंधन, न शक्तियों का भय
चलती जा रही लिए, बस कांधों पर बीड़ा ।

police-court-कविता
गुलाबरानी 

कुछ ऐसी थी ढीठ औरत
जितना कष्ट, उतने ऊँचे स्वर में गाती थी
किसी और की क्या मजाल ,
 जब वो गाने पर आती थी
सारी उम्र, सारे दुःख उसने 'गा' कर बिसरा दिए
ऐसी थी वो बेबाक "गुलाबरानी"
हाँ कुछ ऐसी थी वो बेबाक "गुलाबरानी" ।

बड़ा कठिन होता है,
किसी का किया हुआ शब्दों में लिखना
जिसने जिया हो उम्र भर, उसे चंद पन्नों में लिखना
बड़ा कठिन होता है उस पर लिखना
और,,, उसका न होना
और ,,,, उसका न होना ।।





....... आलोक 




Comments

  1. बेहतर रचना है। महसूस होती है मा की और बचपन की कुछ बातें।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏

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