फ़ुरसत_Part4



1.

मसरूफ़ियत हुई है, अनजानों से
नज़दीकियाँ घटी हैं, जाने पहचानों से
ये नए नए चेहरों की तलाश कब थमेगी,
हम,,अपनों की भीड़ में लगते हैं, बेगानों से।



2.

ढूँढ़ता हूँ आहट, उस कोने में हर दफ़ा
कि अब आवाज़ नहीं आती,
पुकारती थी नाम, पाकर मौजूदगी मेरी
कि बस अब हवाएँ आती हैं, आवाज़ नहीं आती ।



3.

वजहों पर गए, तो बेवजह था सब,
हालातों में उलझे, तो बेसबब था सब,
मसला बस एक था मुद्दतों से,
आगे उसके कहूँ या पीछे , बेवजह था सब ।



4.

काश ये तस्वीरें कोई तिलिस्मी राह होती,
देख कर इनको कुछ हलचल सी होती,
जब चाहा बस देख लिया
और अगले ही पल तो मुलाकात होती,,
काश ये तस्वीरें कोई तिलिस्मी राह होती ।



.....आलोक 



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