इस कपकपाती सर्द में, एक प्याली चाय हो जाए हाथ में हो हाथ तुम्हारा, और बाहर बर्फ गिर जाए । बैठे रहे हम घंटों, गुफ़्तगू की आग़ोश में क्या पता कब दिन ढला, और कब रात हो जाए । कपकपाती_सर्दी थोड़ा करीब रहो यूँ , कि गर्म साँसे मिल जाए सीने से लगी रहो यूँ ही, पता नहीं ये पल कब गुज़र जाए । लबों से कुछ मत कहो, इन आंखों को कहने दो जज़्बातों के माहौल में थोड़ा चुप सा रहने दो रोज ही तो बोलते हैं, अब ज़रा थम जाएं ऐसे ही थामे रहें हाथ, और सदियाँ निकल जाए । कल का न तुझे पता, और न मुझे इल्म है ज़माने की क्या रजा, और क्या जुल्म है तो क्यों सोचना ये,, आ,,सब छोड़ दिया जाए अभी इस पल में , बस खुद को महसूस किया जाए बस खुद को महसूस किया जाए । कि,, इस कपकपाती सर्द में, एक प्याली चाय हो जाए हाथ में हो हाथ तुम्हारा, और बाहर बर्फ गिर जाए । ......आलोक