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चाह

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जीवन चाहे हो सूरजमुखी जैसा, या हो रातरानी समान , दोनों  में अपने लम्हे जीने  का है , गुण अपार है संज्ञान उन्हें बखूबी ,  वो लम्हा बस एक पहर समान अगले पल होगा संकट महान , जब न होगी लालिमा, न पहर रजनी समान  जीते हैं, इंतज़ार करते हैं, शिद्द्त से  चाहे हो वो लालिमा,  या पहर रजनी समान । चाह  आलोक...  

फ़ुरसत_Part5

1. उड़ जाऊँ इस तरह कि गुलाल हो जाऊँ बुझे बुझे चेहरों की  लालिमा हो जाऊँ कुछ न दिखे बस गुलाल ही गुलाल हो खुशियों की आड़ में छिपता मलाल हो भरूँ हाथों में और बरस जाऊँ उड़ जाऊँ इस तरह कि गुलाल हो जाऊँ । 2. पतझड़ आयी पत्तों ने अलविदा कहा जीवित रहने इस विषम घड़ी में  नए मौसम में फिर एक होंगे  सुंदरता ,जीवन और उल्लास लिए। 3. ज़ुस्तज़ू हो थोड़ी ही सही गुफ़्तगू हो थोड़ी ही सही रजा नहीं है ताउम्र की जैसे प्यासी धरती पर  बरसात हो,,, थोड़ी ही सही ।  .... आलोक 

कपकपाती_सर्दी

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इस कपकपाती सर्द में, एक प्याली चाय हो जाए हाथ में हो हाथ तुम्हारा, और बाहर बर्फ गिर जाए । बैठे रहे हम घंटों, गुफ़्तगू की आग़ोश में क्या पता कब दिन ढला, और कब रात हो जाए । कपकपाती_सर्दी   थोड़ा करीब रहो यूँ , कि गर्म साँसे मिल जाए  सीने से लगी रहो यूँ ही, पता नहीं ये पल कब गुज़र जाए । लबों से कुछ मत कहो, इन आंखों को कहने दो जज़्बातों के माहौल में थोड़ा चुप सा रहने दो  रोज ही तो बोलते हैं, अब ज़रा थम जाएं ऐसे ही थामे रहें हाथ, और सदियाँ निकल जाए । कल का न तुझे पता, और न मुझे इल्म है ज़माने की क्या रजा, और क्या जुल्म है तो क्यों सोचना ये,,  आ,,सब छोड़ दिया जाए अभी इस पल में , बस खुद को महसूस किया जाए  बस खुद को महसूस किया जाए । कि,, इस कपकपाती सर्द में, एक प्याली चाय हो जाए हाथ में हो हाथ तुम्हारा, और बाहर बर्फ गिर जाए । ......आलोक