कपकपाती_सर्दी


इस कपकपाती सर्द में,
एक प्याली चाय हो जाए
हाथ में हो हाथ तुम्हारा,
और बाहर बर्फ गिर जाए ।

बैठे रहे हम घंटों,
गुफ़्तगू की आग़ोश में
क्या पता कब दिन ढला,
और कब रात हो जाए ।

कविता-अल्फ़ाज़
कपकपाती_सर्दी  

थोड़ा करीब रहो यूँ ,
कि गर्म साँसे मिल जाए 
सीने से लगी रहो यूँ ही,
पता नहीं ये पल कब गुज़र जाए ।

लबों से कुछ मत कहो,
इन आंखों को कहने दो
जज़्बातों के माहौल में
थोड़ा चुप सा रहने दो 
रोज ही तो बोलते हैं,
अब ज़रा थम जाएं
ऐसे ही थामे रहें हाथ,
और सदियाँ निकल जाए ।

कल का न तुझे पता,
और न मुझे इल्म है
ज़माने की क्या रजा,
और क्या जुल्म है
तो क्यों सोचना ये,, 
आ,,सब छोड़ दिया जाए
अभी इस पल में ,
बस खुद को महसूस किया जाए 
बस खुद को महसूस किया जाए ।

कि,, इस कपकपाती सर्द में,
एक प्याली चाय हो जाए
हाथ में हो हाथ तुम्हारा,
और बाहर बर्फ गिर जाए ।


......आलोक 

Comments

  1. Every time you purloin my heart 💞 away 😍😍💘💘👌👌👌👌👌😘 it's enticing 😍

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    1. Haha thank u so much yr 😍😂😂🤘.. I'll always try my best for such poetry ..

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  2. Towards Literature3 June 2023 at 01:02

    Kavita bhut hi sundar hai, sath hi wo bhav jisme chai hai 😋

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    1. Bahut bahut shukriya.. ar chay ka to fir kya hi kahna😅

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  3. Oh man, this is heart touching 🥹

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  4. Kitni Sundar chahat hai prem ar saadgi ki 👏👏👌👌

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    1. Bahut bahut abhar.. ise padhne ar itna samjhne k liye 🙏🙏

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