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फ़ुरसत_Part5

1. उड़ जाऊँ इस तरह कि गुलाल हो जाऊँ बुझे बुझे चेहरों की  लालिमा हो जाऊँ कुछ न दिखे बस गुलाल ही गुलाल हो खुशियों की आड़ में छिपता मलाल हो भरूँ हाथों में और बरस जाऊँ उड़ जाऊँ इस तरह कि गुलाल हो जाऊँ । 2. पतझड़ आयी पत्तों ने अलविदा कहा जीवित रहने इस विषम घड़ी में  नए मौसम में फिर एक होंगे  सुंदरता ,जीवन और उल्लास लिए। 3. ज़ुस्तज़ू हो थोड़ी ही सही गुफ़्तगू हो थोड़ी ही सही रजा नहीं है ताउम्र की जैसे प्यासी धरती पर  बरसात हो,,, थोड़ी ही सही ।  .... आलोक