तारीख़
जीता जागता एक दिन फ़नाह हो जाता है ,
सब मोह छोड़ सुपुर्द -ए -ख़ाक हो जाता है
और फिर रह जाती है तो,,,,
बस याद , तारीख़........
आलोक....
गुलाबरानी,, स्वरचित कविताओं और लेखों का वह संग्रह है जहाँ आत्मीय भावनाओं को शब्दों का रूप दिया जाता है । उन बहुत से अनकहे भावों को शब्दों का लिबाज़ पहनाया जाता है जिनका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है । The motive of this blog is to make available the inner thoughts in the form of words. It is the collection of poems, shayari, stories, short stories, experiences and many more untold feelings in the form of words.
बख्शीश मत दे मुझे इन चंद मुलाकातो की,
ReplyDeleteगर तरस है मुझ पर तो हर लम्हा पास में रख। 🖤
बहुत ख़ूब 👌👌👌👌
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