Sleepless_nights
ख़ामोश रातों में , वो अजीब सी धुन होती मेरे भाव चिल्लाते , और कायनात सुन्न होती। पहर दर पहर यूँ ही फिसल जाते जब द्वंद की आगोश में, मन और ये आँखें होती । दोनों का लड़ना जैसे जरूरी सा होता, एक को सोने की चाह, तो दूजे को बस घूमना होता बाद बन एक दूसरे के साथी, मीलों नापना होता। मन की गाड़ी में आँखों की सवारी होती दूरियों और कल्पनाओं से परे , उनकी जोड़ीदारी होती । बस इसी जुगलबंदी कि, सारी ये कहानी होती घूमकर, थककर सोने में रात से कब ,, सुबह होती रात से कब ,, सुबह होती ।। .....आलोक