फ़ुरसत_Part7

1.

तूने तो कब का,

रिहा कर दिया अपने तसव्वुर से,,

ये तो मैं हूँ,

जो अब तक तेरे अक्स को ओढ़े हुए हूँ।।



2.

कैसे कहूँ, शिकायत कितनी थी 

बातें जो दरमियाँ थी,

उनकी नज़ाकत कितनी थी। 

बहुत कुछ सुना, और  सहा हमने 

कैसे कहूँ, छटपटाहट कितनी थी।।



3.

उम्मीदों का खेल, आखिर बंद हो गया

वो ग़मज़दा माहौल कम हो गया

न आश रही की अब कुछ हासिल हो जाए,

वो वादों का खेल, आखिर बंद हो गया।। 



......आलोक

Comments

  1. Heart touching words!! Your words need to bleed out more....👌👌🔥🔥👍

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  2. it seems real feel 🤩👌👌👌

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  3. Towards Literature14 June 2023 at 17:14

    Painful 😑

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  4. These are so beautiful

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