कुछ तेरे सपने, कुछ मेरे सपने

कुछ तेरे सपने, कुछ मेरे सपने 
कहने को तो ये अलग अलग है ,सपने 
पर क्यों अक्सर मैं देखा करता हूँ , तुम्हारे सपने 
शायद कुछ मेरे से है,ये तेरे सपने । 

एक नई तरंग सी उठती है ,
एक नई आस सी जगती है ,
लगता है मिलेंगे नए आयाम ,
मिलकर कुछ तेरे सपने से ,ये मेरे सपने । 

मैंने अपना सब कुछ दिया ,
तूने यक़ीनन सब  कुछ किया 
हर डगर पर मिलकर चले 
कुछ तेरे सपने ,कुछ मेरे सपने। 

हालातों ने डराया ,मुसीबतों ने रुलाया 
काल चक्र ने भी खूब उलझाया 
फिर भी चले ये ,
निडर ही बढ़े ये ,साथ पाकर 
कुछ तेरे सपने ,कुछ मेरे सपने। 

अतीत बिसरा दिया मैंने ,
सारे दर्दोगम भुला दिए मैंने,
क्योंकि अनुभूति सी हुई है किसी आह्लाद की ,
जब देखे पूरे होते हुए ,
कुछ तेरे सपने ,कुछ मेरे सपने। 

बहुत तो नहीं , पर कुछ वादे जरूर थे 
होंगे एक दिन पूरे, 
इतने तो यक़ीनन थे 
भले ही हम साथ न हो 
पर साथ हमेशा होंगे 
कुछ तेरे सपने ,कुछ मेरे सपने।

माहौल की तस्वीर बदल जाये 
यादें थोड़ी बिसर जाये 
सब मुमकिन है इस बदलते जग में 
पर नहीं बदलेंगे ये 
कुछ तेरे सपने ,कुछ मेरे सपने। 

माना डगर कठिन  थी 
सारी परिस्थितियाँ बड़ी विषम थी 
छूटा साथ कुछ लम्हे के लिए 
पर आज भी साथ  हैं 
कुछ तेरे सपने ,कुछ मेरे सपने। 

                                              .....आलोक 

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