Lamhaa

हर लम्हा मुझसे कुछ कहने की आस रखता है,
रहूँ भिज्ञ  या अनभिज्ञ  उससे ,
फिर भी प्रयास  करता  है
हो चाहे ऊँचाइयों के अर्श पर,
या फिर गहराइयों के फर्श पर
बस यही लम्हा ही तो है, जो साथ रहता है |

हो जीवन विलासिता का,
या हो संघर्ष  गरीबी का
एक लम्हा ही है जो ये दीवार बनाता है
चाहे तन पर हो मखमल या फटे-चिथड़े लत्ते,
ये लम्हा ही हमें मर्म-हीन और बेशर्म बनाता है ।

बचपन बीते अपनों के साये में,
या सड़कों में पड़े मलबे के सराय में
ये लम्हा ही है जो हमें ढीठ बनाता है
कहीं गुजरती रातें छप्पन-भोग के स्वाद से,
तो कहीं भूखे पेट करवटों की आड़ में,
ये लम्हा ही है जो सम्पन्नता,
और विपन्नता का अधिकार दिलाता है ।

lamhaa-poem-amazon-कविता
Lamhaa
https://gulaabrani.com/2019/02/tomorrow-impression.html

रुक जाते है हम,,,
किसी असहाय की मदद करने में
कमबख्त ये लम्हा ही हमें सफ़ेद-पोश,
और उसे जग की धूल बनाता है ।

                                  .....आलोक 

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