दायित्व_Sad Reality
I wrote this poem on march 9th, 2013. And it is a bit coincidence that after 6 years I am sharing it on my blog on march 10th, 2019. Yeah, it is not exactly the same date but the closest one. I already posted it on facebook 6 years ago.
My whole creation is based on the sad reality around us. Parents become the most important responsibility at their old age. They went through all trauma, pain and sacrifice for the sake of their children's future.No matters what are the situations, they always ready to do anything for a cute smile on your face.
But what do we do?? just leave them in the lurch . In their dire need, we just manage to involve ourselves in the busiest facade. I think that's why, it is the "Sad Reality".
उम्र हो चली मेरी बिछड़ने की अपनों से,
साँस चल रही बस मिलने की हसरत में अपनों से,
न जाने किस घड़ी उसका पैगाम आ जाये,
और तैयारी करनी पड़ जाये खुदा से मिलने की ।
उससे पूछूंगी की मैंने कौन सा अपराध किया ?
जिसे रखा नौ महीने कोख में ,आज उसी ने पराया किया,
जिसे लगा के रखा सदा अपनी छाती से,
आज मोहताज हूँ सहारे को,उसी अपनों के हाथों से ।
https://gulaabrani.com/2018/12/Rahgeer-explorer-lively.html
जिन हाथों को आराम चाहिए ,आशीर्वाद के लिए
वो भर रहे हैं झोली औरों की , बस दो वक़्त की रोटी के लिए
जिसे होना चाहिए था घर में अपनों के साथ ,
वो खुले आसमान को अपना घर बता रही है,
जिसे सोना था मखमल के बिस्तर में ,
वो सड़क पर ही अपना जीवन काट रही है।
जिसकी आँखों में आँसू होने थे खुशी के ,
वो आँसू अकेलेपन का सबब लिए हुए है,
जिसका बगीचा गुलजार होना था फूलों से,
वो फूल काँटों का रूप लिए हुए है।
जिसे गाने थे गीत अपनों के वर्चस्व के,
वो मांग रहे है दुआ ,बस अपनों के भविष्य के।
कि , ये शिकायत नहीं है तुझसे ,ऐ मालिक ,
बस फिक्र है, क्योंकि माँ हूँ उसकी
जो मेरे साथ हुआ सो ठीक ,
पर ये हालत न हो कभी उसकी।।
.....आलोक
My whole creation is based on the sad reality around us. Parents become the most important responsibility at their old age. They went through all trauma, pain and sacrifice for the sake of their children's future.No matters what are the situations, they always ready to do anything for a cute smile on your face.
But what do we do?? just leave them in the lurch . In their dire need, we just manage to involve ourselves in the busiest facade. I think that's why, it is the "Sad Reality".
उम्र हो चली मेरी बिछड़ने की अपनों से,
साँस चल रही बस मिलने की हसरत में अपनों से,
न जाने किस घड़ी उसका पैगाम आ जाये,
और तैयारी करनी पड़ जाये खुदा से मिलने की ।
उससे पूछूंगी की मैंने कौन सा अपराध किया ?
जिसे रखा नौ महीने कोख में ,आज उसी ने पराया किया,
जिसे लगा के रखा सदा अपनी छाती से,
आज मोहताज हूँ सहारे को,उसी अपनों के हाथों से ।
Sad-Reality |
जिन हाथों को आराम चाहिए ,आशीर्वाद के लिए
वो भर रहे हैं झोली औरों की , बस दो वक़्त की रोटी के लिए
जिसे होना चाहिए था घर में अपनों के साथ ,
वो खुले आसमान को अपना घर बता रही है,
जिसे सोना था मखमल के बिस्तर में ,
वो सड़क पर ही अपना जीवन काट रही है।
जिसकी आँखों में आँसू होने थे खुशी के ,
वो आँसू अकेलेपन का सबब लिए हुए है,
जिसका बगीचा गुलजार होना था फूलों से,
वो फूल काँटों का रूप लिए हुए है।
जिसे गाने थे गीत अपनों के वर्चस्व के,
वो मांग रहे है दुआ ,बस अपनों के भविष्य के।
कि , ये शिकायत नहीं है तुझसे ,ऐ मालिक ,
बस फिक्र है, क्योंकि माँ हूँ उसकी
जो मेरे साथ हुआ सो ठीक ,
पर ये हालत न हो कभी उसकी।।
.....आलोक
Bahut acche
ReplyDeleteThanx bhai 😀
DeleteYara.. likha kro or
ReplyDeleteHan bhai jaroor 😀👍
ReplyDelete