हाँ, एक कुआँ हूँ मैं



हाँ, एक कुआँ हूँ मैं
भावनाओं के नीर से लबालब
मर्म की मिट्टी से निर्मित
सहजता की जगत लिए
सींचने में तत्पर, एक कुआँ हूँ मैं ।

मैं भरता रहा, निकलता रहा
रही जिसकी जरूरत जैसे,
वैसे ही मेरा नीर बहता रहा
समय दर समय गुजरता रहा
मेरी उपयोगिताओं का सफर बढ़ता ही गया।


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Well of Feelings
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सहसा समय बदला
प्रकृति ने अपना दाव खेला,
मुझमे से बस निकलता रहा
मेरा स्तर धीरे धीरे घटता जा रहा है
अरसा गुज़र गया इंतज़ार में,
न बारिश बची,न झीलें
फिर से उफनाने का स्वप्न
भी क्षण क्षण मरता रहा,
हाँ, एक कुआँ हूँ मैं ।

आश में हूँ शायद बरस जाए
मेरे खाली होते अस्तित्व में
एक बार फिर बहार आ जाये,
ललचायी आँखों से ऊपर देखता हूँ,
हाँ, एक कुआँ हूँ मैं ।।

                            .....आलोक

 

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